हौज़ा न्यूज़ एजेंसी |
लेखक: सैयद मुशाहिद आलम रिज़वी
हर ज़ालिम से लड़ने के लिए वक़्त का एक मूसा होता है, उसी तरह हर यज़ीद को रुसवा करने के लिए हुसैनी फ़िक्र रखने वाले भी होते हैं।
मेरा मतलब है कि इज़राइल कई दिनों से लेबनान, फिलिस्तीन, सीरिया और ईरान को विभिन्न बहानों से चिढ़ा रहा है। गाजा में बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को निशाना बनाया जा रहा था, जब तक कि उन्होंने ईरान में हमास के नेता इस्माइल हनिया जैसे मेहमान की हत्या नहीं कर दी और फिर पिछले शुक्रवार शाम को हिजबुल्लाह लेबनान के दिवंगत महासचिव सैयद हसन नसरल्लाह की हत्या कर दी गई। उनके बड़े भाई को उनकी बेटी ज़ैनब के साथ मिसाइलों से शहीद कर दिया गया और अरबों मुसलमानों के दिलों को घायल कर दिया। साहस इतना बढ़ गया कि इज़राइल भूतिया अरब देशों और जॉर्डन जैसे पाखंडियों के लिए खतरा बन गया।
अब उसके सबक सिखाना ज़रूरी था लेकिन कायर और डरे हुए और अपमानित अरब शांति से कोने में बैठे इंतजार कर रहे थे और सभी की निगाहें ईरान पर टिकी थीं कि बहादुर ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामेनेई ने अपनी मिसाइलें तेल अवीव की ओर मोड़ दीं और हाबिल की सेना इसराइल पर टूट पड़ी, कि अब इसराइली बंकरों में चूहों की तरह छुपे हुए हैं, ये तो बस शुरुआत है।
इब्तेदाए इश्क है रोता है क्या?
आगे आगे देखिए होता है क्या?
जब इरानी मिसाइलों का आसमानी कहर अबाबील की तरह इजराइल पर टूटा तो दुनिया के नेक लोगों के दिल थोड़े ठंडे हो गए, अब यह बदले की एक झलक है, फिर इंतजार करें क्योंकि हम भी आपके साथ इंतजार कर रहे हैं।